जानवरों की सैन्य ट्रेनिंग अब आधुनिक युद्ध रणनीति का अहम हिस्सा बन चुकी है। दुनिया की कई सेनाएं चूहे, मधुमक्खियां, डॉल्फिन, पक्षी और यहां तक कि बिल्लियों तक का इस्तेमाल जासूसी, निगरानी और बारूदी सुरंगों की पहचान के लिए कर रही हैं। यह पहल न सिर्फ युद्ध के तरीके बदल रही है, बल्कि दुश्मन को चौंकाने वाली खुफिया रणनीति बनती जा रही है।
नई तकनीकों और AI के इस युग में जानवरों की स्वाभाविक क्षमताओं को सेंसर्स, कैमरा और GPS जैसे उपकरणों से जोड़ा जा रहा है। जिससे उनका उपयोग सीमा सुरक्षा और आतंकी हमलों को रोकने में बेहद कारगर सिद्ध हो रहा है।
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कंबोडिया और यूक्रेन में चूहे बन रहे ‘हीरो’:
इन देशों में ‘HeroRAT’ नामक चूहों को विशेष प्रशिक्षण दिया जाता है। ये बारूदी सुरंगों और विस्फोटकों की पहचान बेहद सटीकता से कर सकते हैं। इन चूहों को इस तरह प्रशिक्षित किया गया है कि वे विस्फोटक गंध को पहचानते ही ट्रेनर को संकेत देते हैं। इनका वजन हल्का होता है, जिससे वे विस्फोटकों को सक्रिय किए बिना ही उनके पास पहुंच सकते हैं।
भारत में मधुमक्खियाँ बनीं बॉर्डर गार्ड:
DRDO समेत कई रक्षा एजेंसियों ने मधुमक्खियों पर शोध किया है, जिससे सीमा पर संदिग्ध गतिविधियों की पहचान में उनकी मदद ली जा सके। इन मधुमक्खियों को एक खास फेरोमोन आधारित प्रणाली के ज़रिए प्रशिक्षित किया जाता है ताकि वे विस्फोटकों या घुसपैठियों की गंध पहचान सकें।
डॉल्फिन का समुद्री बॉर्डर पर कमाल:
अमेरिका और रूस जैसे देश समुद्री निगरानी के लिए डॉल्फिन को सालों से ट्रेन कर रहे हैं। ये डॉल्फिन पानी के भीतर माइंस, दुश्मन की पनडुब्बियों और यहां तक कि गोताखोरों की भी पहचान कर सकती हैं। डॉल्फिन की सेंसिंग क्षमता राडार से भी कई गुना अधिक तेज़ मानी जाती है।
पक्षी और बिल्लियां भी हैं खुफिया मिशन पर:
अमेरिका ने शीत युद्ध के दौरान ‘Acoustic Kitty’ प्रोजेक्ट के तहत बिल्लियों को माइक्रोफोन और ट्रांसमीटर से लैस कर खुफिया जानकारी जुटाने में लगाया था। वहीं शिकारी पक्षियों जैसे बाज और चील को छोटे कैमरों के साथ दुश्मन की गतिविधियों को रिकॉर्ड करने के लिए इस्तेमाल किया गया।
हाथी और कुत्ते: पारंपरिक लेकिन अब हाईटेक:
भारत और म्यांमार जैसे देशों में हाथियों का इस्तेमाल सीमा पर गश्त के लिए किया जाता है। इन्हें GPS से जोड़ा गया है ताकि इनकी मूवमेंट को मॉनिटर किया जा सके। वहीं कुत्ते, खासकर स्निफर डॉग्स को AI बेस्ड हेल्मेट और कैमरों से लैस किया जा रहा है ताकि वे रियल टाइम वीडियो और लोकेशन भेज सकें।
विशेषज्ञों का मानना है कि जानवरों की यह सैन्य उपयोगिता न सिर्फ आर्थिक रूप से सस्ती है, बल्कि दुश्मन की पकड़ में भी जल्दी नहीं आती। यही वजह है कि अब रक्षा रणनीति में जानवरों का योगदान एक ‘साइलेंट सोल्जर’ की तरह उभर रहा है।
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