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ISI जासूसी का नया खेल: अब आम लोग भी निशाने पर!

ISI भारत जासूसी नेटवर्क को लेकर सुरक्षा एजेंसियां सतर्क, आम नागरिक भी बन रहे हैं ISI एजेंट

पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी ISI भारत में जासूसी नेटवर्क फैलाने के लिए अब सिर्फ फौजी या सरकारी अफसरों पर निर्भर नहीं है। ISI भारत जासूसी नेटवर्क अब आम नागरिकों तक पहुंच गया है, और इसके लिए हनीट्रैप, लालच, सोशल मीडिया जैसे साधनों का इस्तेमाल किया जा रहा है। हालिया गिरफ्तारियों ने इस खतरनाक बदलाव की पुष्टि की है।

देश के कई हिस्सों में सुरक्षा एजेंसियों ने ऐसे लोगों को पकड़ा है जो न तो किसी अहम पद पर थे और न ही किसी खास प्रशिक्षण के साथ आए थे। ISI को बस जानकारी चाहिए थी – चाहे वह सेना की मूवमेंट हो, या संवेदनशील लोकेशन की फोटो। बदले में आरोपी या तो पैसों के लालच में फंसे या डिजिटल हनीट्रैप का शिकार बने।

बीते वर्षों के कुछ हाई-प्रोफाइल मामलों को देखें तो साफ दिखता है कि ISI किस तरह भारतीयों को फंसाने की रणनीति बदल चुका है। पहले जहां टारगेट्स ज्यादातर सुरक्षाबलों या रक्षा विभाग से जुड़े होते थे, अब सामान्य नागरिकों को भी निशाना बनाया जा रहा है।

1. कविता रॉय (2019, विशाखापत्तनम): भारतीय नौसेना में सिविलियन कर्मचारी थीं। फेसबुक पर बनी दोस्ती ने ISI की महिला एजेंट से जोड़ा। हनीट्रैप में फंसकर नौसेना मूवमेंट्स और सबमरीन की डिटेल लीक की।

2. सुमित कुमार (2018, पंजाब): बीएसएफ जवान था। व्हाट्सएप पर बॉर्डर पेट्रोलिंग की जानकारी भेजते हुए पकड़ा गया। पैसों के बदले देश की गोपनीयता दांव पर लगा दी।

3. दिलीप सिंह (2020, राजस्थान): रेलवे में क्लर्क था। एक पाकिस्तानी महिला से सोशल मीडिया पर दोस्ती हुई। उसने रेलवे मूवमेंट्स और सेना की सप्लाई से जुड़ी जानकारी साझा की।

4. अफसाना खातून (2022, कोलकाता): निजी कॉल सेंटर में काम करती थी। एक फर्जी इंटरनेशनल क्लाइंट से चैटिंग के दौरान रक्षा कॉल लॉग्स लीक किए।

5. महेश पाटिल (2023, महाराष्ट्र): ड्रोन मैकेनिक था। कुछ ही पैसों में बॉर्डर इलाकों की ड्रोन इमेजरी साझा की।

इन सभी मामलों में एक समान बात रही – आरोपी न तो ज्यादा पढ़े-लिखे थे, न ही किसी खास सामाजिक रुतबे के थे। ISI के लिए केवल ‘जानकारी’ मायने रखती है। और इसी वजह से अब कोई भी इसका आसान निशाना बन सकता है।

सुरक्षा एजेंसियों का कहना है कि इस पैटर्न शिफ्ट ने उनके लिए चुनौती बढ़ा दी है। पहले एजेंसियों की नजर सिर्फ रक्षा संस्थानों पर होती थी, लेकिन अब आम लोगों के मोबाइल, सोशल मीडिया एक्टिविटी और डिजिटल बिहेवियर पर भी निगरानी बढ़ानी पड़ी है।

विशेषज्ञ मानते हैं कि ISI की यह रणनीति ‘माइक्रो-इंटेलिजेंस’ पर आधारित है, जिसमें छोटे-छोटे टुकड़ों में सूचनाएं ली जाती हैं और उन्हें जोड़कर बड़ा सुरक्षा चित्र तैयार किया जाता है। यानी एक आम नागरिक के फोन से मिली फोटो भी राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा बन सकती है।

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