लखनऊ। राजनाथ सिंह ब्रह्मोस मिसाइल लखनऊ समारोह में भारत की सैन्य शक्ति का नया अध्याय जुड़ गया। उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में निर्मित सुपरसोनिक ब्रह्मोस मिसाइलों के पहले बैच को रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने शनिवार को हरी झंडी दिखाकर रवाना किया। धनतेरस के दिन चार मिसाइलों की डिलीवरी के साथ भारत ने रक्षा उत्पादन के क्षेत्र में नई ऊंचाई हासिल की।
रक्षा मंत्री ने इस अवसर पर कहा कि अब पाकिस्तान की एक-एक इंच जमीन ब्रह्मोस मिसाइल की पहुंच में है। उन्होंने कहा कि “ऑपरेशन सिंदूर तो सिर्फ एक ट्रेलर था,” जिसने दुनिया को भारत की रक्षा क्षमता का अंदाज़ा करा दिया। सिंह ने बताया कि मात्र पांच महीनों में लखनऊ इकाई ने मिसाइल प्रोडक्शन पूरा कर इतिहास रचा है।
राजनाथ सिंह ने कहा कि ब्रह्मोस की पहली खेप के साथ आत्मनिर्भर भारत का सपना और मजबूत हुआ है। यह यूनिट अगले वित्तीय वर्ष में 3,000 करोड़ रुपये का टर्नओवर और 500 करोड़ रुपये का जीएसटी राजस्व देगी। उन्होंने कहा कि यह उपलब्धि केवल सैन्य क्षेत्र में नहीं, बल्कि आर्थिक दृष्टि से भी “शक्ति का प्रतीक” है।
रक्षा मंत्री ने कहा कि लखनऊ यूनिट ने 380 करोड़ रुपये की लागत से तैयार यह सुविधा, भविष्य में थलसेना, नौसेना और वायुसेना को हर साल 100 मिसाइल सिस्टम उपलब्ध कराएगी। इस दौरान उन्होंने रुद्राक्ष का पौधा लगाकर शुभारंभ किया और कहा कि “महादेव का आशीर्वाद इस अत्याधुनिक तकनीक पर बना रहे।”
राजनाथ सिंह ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की सराहना करते हुए कहा कि “कभी यूपी की पहचान गुंडाराज से होती थी, आज यह डिफेंस हब बन चुका है।” उन्होंने कहा कि योगी सरकार के नेतृत्व में निवेशकों का विश्वास लौटा है और लखनऊ अब तहजीब के साथ-साथ तकनीक का भी शहर बन गया है।

ब्रह्मोस मिसाइल को उन्होंने भारत की स्वदेशी शक्ति का प्रतीक बताया, जो सुपरसोनिक गति से लंबी दूरी तक सटीक प्रहार करने में सक्षम है। उन्होंने कहा कि ऑपरेशन सिंदूर ने ब्रह्मोस पर देश और दुनिया का भरोसा बढ़ाया है।
धनतेरस के मौके पर रक्षा मंत्री ने कहा, “आज की डिलीवरी ही देश के लिए सबसे बड़ा धनतेरस है। हर मिसाइल न केवल हमारी सीमाओं की रक्षा करती है, बल्कि देश की अर्थव्यवस्था को भी सशक्त बनाती है।” उन्होंने बताया कि हाल ही में भारत ने फिलीपींस सहित दो देशों से 4,000 करोड़ रुपये के निर्यात अनुबंध किए हैं।
राजनाथ सिंह ने कहा कि भारत अब “टेकर नहीं, बल्कि गिवर” की भूमिका में है। 2014 में जो यात्रा शुरू हुई थी, वह आज 2047 के विकसित भारत के लक्ष्य की ओर अग्रसर है।
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