November 13, 2025

जो साधक नवरात्रि का सातवां दिन मना रहे हैं वह मां कालरात्रि को पूजेंगे

आज, 28 सितंबर 2025 को शारदीय नवरात्रि का सातवाँ दिन है, जिसे सप्तमी तिथि कहा जाता है। इस दिन माँ दुर्गा के सातवें रूप माँ कालरात्रि की पूजा की जाती है। माँ कालरात्रि अंधकार, अज्ञानता, भय और शत्रुओं का नाश करने वाली हैं। वह शुभंकारी हैं और अपने भक्तों को सिद्धियों तथा निधियों की प्राप्ति कराती हैं।

मुख्य श्लोक (स्तुति)

माँ कालरात्रि का मुख्य श्लोक दुर्गा सप्तशती तथा अन्य ग्रंथों से लिया गया है। यह श्लोक है:

एकवेणी जपाकर्णपूरा नग्ना खरास्थिता।
लम्बोष्ठी कर्णिकाकर्णी तैलाभ्यक्तशरीरिणी॥
वामपादोल्लसल्लोहलताकण्टकभूषणा।
वर्धनमूर्धध्वजा कृष्णा कालरात्रिर्भयंकरी॥

अर्थ : यह श्लोक माँ कालरात्रि के भयंकर रूप का वर्णन करता है। वह एक चोटी वाली हैं, उनके कान जप पुष्पों से सजे हैं, नग्न अवस्था में हैं और गधे पर सवार हैं। उनके होंठ बड़े हैं, कान बड़े और कर्णिका युक्त हैं, शरीर तेल से अभिषिक्त है। उनके बाएँ पैर पर चमकती हुई लोहे की जंजीर और काँटों से सजी है। सिर पर बढ़ते चंद्र की ध्वजा है, कृष्ण (काली) वर्ण वाली माँ कालरात्रि भयंकर हैं और भय का नाश करती हैं। 1 7

इसके अलावा, पूजा में मुख्य मंत्र है: ॐ देवी कालरात्र्यै नमः॥ या या देवी सर्वभूतेषु माँ कालरात्रि रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥ इनका जाप भय और नकारात्मक ऊर्जा से मुक्ति दिलाता है।

माँ कालरात्रि का स्वरूप अत्यंत भयंकर और शक्तिशाली है। उनकी त्वचा काली है, बाल खुले और बिखरे हुए हैं, तीन नेत्र हैं जो ब्रह्मांड की तरह गोल हैं। वह चार भुजाओं वाली हैं: दाहिनी ऊपरी भुजा में तलवार, दाहिनी निचली भुजा में वर मुद्रा (आशीर्वाद देने वाली), बाईं ऊपरी भुजा में लोहे का काँटा या हुक, और बाईं निचली भुजा में अभय मुद्रा (भय निवारण वाली)। वह गधे पर सवार होती हैं, जो अज्ञानता का प्रतीक है। उनका रूप अंधकार का नाश करने वाला है, लेकिन भक्तों के लिए शुभंकारी है। वह सिद्धियों (अलौकिक शक्तियाँ) और निधियों (खजाने) प्रदान करती हैं।

साधक का आज्ञा चक्र और संबंधित बातें

नवरात्रि साधना में प्रत्येक दिन एक विशिष्ट चक्र (कुंडलिनी योग के अनुसार) पर ध्यान केंद्रित किया जाता है। आज्ञा चक्र (Third Eye Chakra) का संबंध सामान्यतः छठे दिन (माँ कात्यायनी) से है, जो भौंहों के बीच स्थित है। यह चक्र अंतर्ज्ञान, बुद्धि और स्पष्ट दृष्टि का केंद्र है।

लेकिन आज (सातवें दिन) माँ कालरात्रि की साधना में साधक का मुख्य ध्यान सहस्रार चक्र (Crown Chakra) पर होता है, जो सिर के शीर्ष पर स्थित है। यह चक्र दिव्य ऊर्जा से जुड़ाव, आत्मज्ञान और ब्रह्मांड से एकता का प्रतीक है। साधना के दौरान योगी या उपासक सहस्रार चक्र पर ध्यान लगाकर सिद्धियाँ प्राप्त करते हैं।

  • रंग: काला या गहरा नीला। पूजा में काले वस्त्र पहनें।
  • भोग: गुड़, नारियल, फल और मीठे व्यंजन। जागरण या रात्रि जागरण की परंपरा।
  • लाभ: भय, रोग, शत्रु और नकारात्मक ऊर्जा का नाश। शनि दोष से मुक्ति।
  • आरती/पूजा विधि: सुबह या शाम पूजा करें, श्लोक का पाठ करें, दीपक जलाएं और मंत्र जाप करें।

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