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सच्चिदानंद सरस्वती जी ने जताया सुप्रीम कोर्ट से अपना विरोध

द्वारका, गुजरात। अमूमन ऐसा होता नहीं है पर हाल में ही चीज जस्टिस गवई की एक टिप्पणी पर पश्चिमाम्नाय श्रीदरकारदप्पीठम के जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी सच्चिदानंद सरस्वती जी महाराज द्वारा सुप्रीम कोर्ट को लिखे गए पत्र धार्मिक समुदाय में चर्चा का विषय बन गया है। अपने एक फैसले में चीफ जस्टिस गवाही ने कहा था कि भगवान विष्णु अपनी मूर्ति खुद से ठीक कर लें। जबकि प्रार्थी की ओर से आग्रह किया गया था की खंडित मूर्ति को हटाकर नवीन विग्रह की स्थापना की जाए।पश्चिमाम्नाय श्रीदरकारदप्पीठम के जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी सच्चिदानंद सरस्वती जी महाराज ने यह पत्र मुख्य रूप से हिंदू धर्म के प्राचीन कर्तव्य पालन और आध्यात्मिक परंपराओं की रक्षा के लिए लिखा है।

जहां स्वामी जी ने भक्तों को भगवान विष्णु के प्रति समर्पण, नैतिक जीवन जीने और समाज में धार्मिक मूल्यों को मजबूत करने की प्रेरणा दी है। उन्होंने चीफ जस्टिस पर अन्नाय का भी आरोप लगाया।

पत्र में विस्तार से उल्लेख है कि आधुनिक जीवनशैली में व्यस्तताओं के कारण लोग अपने धार्मिक दायित्वों से विमुख हो रहे हैं, जिससे नैतिक पतन और सामाजिक असंतुलन बढ़ रहा है। स्वामी जी ने सुप्रीम कोर्ट से अपील की है कि संवैधानिक ढांचे के तहत धार्मिक संस्थानों को संरक्षण प्रदान किया जाए, ताकि आदि शंकराचार्य द्वारा स्थापित पीठों की परंपराएं अक्षुण्ण रहें। विशेष रूप से, पत्र में कहा गया है कि “भगवान विष्णु स्वयं भक्तों के कर्तव्यों का निरीक्षण करते हैं”, और यदि कर्तव्य पालन में कमी आई तो समाज में अस्थिरता आ सकती है। यह अपील धार्मिक स्वतंत्रता के संरक्षण और आधुनिक चुनौतियों के बीच परंपराओं को जोड़ने के उद्देश्य से प्रेरित है। कार्यक्रम “जागदुरु शंकराचार्य विजयतेतरंग” के दौरान जारी इस पत्र को भक्तों ने सराहा है, जो सुप्रीम कोर्ट के माध्यम से राष्ट्रीय स्तर पर धार्मिक जागरूकता फैलाने का प्रयास है। स्वामी जी ने आगे कहा कि सुप्रीम कोर्ट जैसे संवैधानिक संस्थान ही धार्मिक मूल्यों को मजबूत करने में सहायक सिद्ध होंगे।

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