नवरात्र में पांचवें दिन स्कंदमाता मैया की पूजा का विधान है, मैया सिंह पर विराजमान हैं और उनकी गोद में बालरूप स्कंद (कार्तिकेय) हैं, ममता और वात्सल्य की देवी हैं। वह ज्ञान और क्रिया की शक्ति का प्रतीक हैं। इनकी उपासना से साधक की बुद्धि का विकास होता है, ज्ञान की प्राप्ति होती है और संतान सुख की मनोकामना पूर्ण होती है।
माँ स्कंदमाता का श्लोक
माँ की आराधना के लिए यह श्लोक अत्यंत महत्वपूर्ण है:
श्लोक:
सिंहासनगता नित्यं पद्माश्रितकरद्वया।
शुभदास्तु सदा देवी स्कन्दमाता यशस्विनी॥
अर्थ -जो देवी सिंह पर विराजमान हैं और जिनके दोनों हाथ कमल के फूल की शोभा से युक्त हैं, उन यशस्विनी माँ स्कंदमाता को मैं नित्य प्रणाम करता/करती हूँ। वह देवी सदैव हमें शुभ फल प्रदान करें।

नवरात्रि के पांचवें दिन साधक का ध्यान (योगिक फोकस) विशुद्ध चक्र पर केंद्रित रहता है।
विशुद्ध चक्र (Vishuddha Chakra): यह चक्र गले में स्थित है और शुद्धिकरण, अभिव्यक्ति और ज्ञान का केंद्र माना जाता है। इस दिन साधक अपनी वाणी और विचारों में पवित्रता लाने का प्रयास करता है। माँ स्कंदमाता की कृपा से यह चक्र जागृत होता है, जिससे साधक को ज्ञान और शुद्धता की अनुभूति होती है।
माँ स्कंदमाता की उपासना से साधक का मन सात्विक और निर्मल होता है। यह देवी बुध ग्रह को नियंत्रित करती हैं, इसलिए इनकी पूजा से ज्ञान, बुद्धि और विवेक में वृद्धि होती है। मन में करुणा, वात्सल्य और दया के भाव प्रबल होते हैं। साधक सांसारिक बंधनों से मुक्त होकर परम शांति और सुख का अनुभव करता है।
मन का चरित्र माँ की ममतामयी छवि से प्रेरित होता है, जिससे व्यक्ति में द्वेष और नकारात्मकता कम होती है, और वह सकारात्मक, शांत एवं संतुलित जीवन जीने की प्रेरणा पाता है।
आज की पूजा में विशेष
इस दिन पीले रंग का विशेष महत्व है, यह शुभता और ज्ञान का प्रतीक है। मां को केले का भोग लगाने से बुद्धि का विकास होता है। सच्चे मन से की गई उपासना से माँ स्कंदमाता भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण करती हैं।
