GLOBE

नवरात्रि का दूसरा दिन मां ब्रह्मचारिणी के चरणों में समर्पित

माँ ब्रह्मचारिणी: तप, त्याग और साधना की प्रतीकनवरात्रि का दूसरा दिन माँ दुर्गा के दूसरे स्वरूप, माँ ब्रह्मचारिणी को समर्पित है। ‘ब्रह्म’ का अर्थ है तपस्या और ‘चारिणी’ का अर्थ है आचरण करने वाली। इस प्रकार, माँ ब्रह्मचारिणी का अर्थ हुआ तप का आचरण करने वाली। उनका यह स्वरूप हमें जीवन में त्याग, तपस्या और सादगी का महत्व सिखाता है।

माँ ब्रह्मचारिणी का स्वरूपदधाना करपद्माभ्यामक्षमालाकमण्डलू।देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा॥

माँ ब्रह्मचारिणी के स्वरूप का वर्णन अत्यंत ही मनोहारी और प्रेरणादायक है। उनके दाहिने हाथ में जपमाला और बाएं हाथ में कमंडल है। वे अत्यंत शांत, सौम्य और तपस्या में लीन दिखाई देती हैं।

उनका यह स्वरूप हमें यह संदेश देता है कि सच्चे ज्ञान और सिद्धि की प्राप्ति के लिए कठोर तपस्या और आत्म-नियंत्रण आवश्यक है।पौराणिक कथापौराणिक कथाओं के अनुसार, माँ ब्रह्मचारिणी पूर्व जन्म में हिमालय की पुत्री थीं। उन्होंने भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए कठोर तपस्या की थी। उन्होंने कई वर्षों तक केवल फल-फूल खाकर, फिर सूखे पत्ते खाकर और अंत में बिना कुछ खाए-पिए तपस्या की। उनकी इस कठोर तपस्या से तीनों लोक कांप उठे। देवताओं ने उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर उन्हें वरदान दिया कि उनकी इच्छा अवश्य पूरी होगी। उनकी इस तपस्या के कारण ही उन्हें ब्रह्मचारिणी के नाम से जाना गया।आध्यात्मिक महत्वमाँ ब्रह्मचारिणी की पूजा का आध्यात्मिक महत्व बहुत गहरा है। यह पूजा हमें आत्म-विश्वास, धैर्य और दृढ़ संकल्प का पाठ पढ़ाती है। उनका यह स्वरूप हमें बताता है कि यदि हम किसी भी लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए सच्चे मन से प्रयास करें, तो कोई भी बाधा हमें रोक नहीं सकती।

वे हमें संयम, त्याग और तपस्या के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देती हैं। नवरात्रि के दूसरे दिन माँ ब्रह्मचारिणी की पूजा करने से व्यक्ति में तपस्या की शक्ति, धैर्य और त्याग की भावना का संचार होता है।इस नवरात्रि, माँ ब्रह्मचारिणी की पूजा कर हम उनके गुणों को अपने जीवन में उतारने का प्रयास करें और अपने लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए दृढ़ संकल्पित हों।

Exit mobile version