गोमती पुस्तक महोत्सव: लेखक शीला रोहेकर से साहित्य और समाज पर खास बातचीत
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लखनऊ: गोमती पुस्तक महोत्सव में लेखक शीला रोहेकर ने साहित्य, इतिहास और समाज के बीच के रिश्ते पर गहन विचार साझा किए। उन्होंने कहा,
“साहित्य हमेशा इतिहास और उससे जुड़ी राजनीतिक घटनाओं को साथ लेकर चलता है। इनके बिना आपकी रचना में कोई महत्व नहीं। आपको सिर्फ़ घटना का वर्णन नहीं करना चाहिए, बल्कि इससे पात्रों और समाज पर क्या असर पड़ता है, यह भी दर्शाना आवश्यक है।”
साहित्य में अल्पसंख्यक अनुभव: शीला रोहेकर ने अपने यहूदी समुदाय के अनुभवों को साहित्य में शामिल करने के सवाल पर बताया,
“जो अपमान और परेशानी यहूदी समाज ने देखी है, उन तकलीफ़ों को मैंने जाना है और निराशा भी देखी है। मेरे साहित्य में मेरे यहूदी समाज का आना सिर्फ़ दस्तावेज़ीकरण तक सीमित नहीं है। त्रासदी हर एक इंसान के लिए अलग होती है।”
युवा लेखकों के लिए संदेश: उन्होंने युवा लेखकों को सलाह दी,
“खूब पढ़िए, अच्छी किताबें पढ़िए, धीरे-धीरे पढ़िए, उन्हें ग्रहण कीजिए और मनन कीजिए। तभी आपके लेखन में चमक आएगी। हम चाँद की रोशनी में पढ़ते थे। तब जाकर भाषा में स्वतंत्रता आती है।”
साहित्य में विज्ञान का महत्व: शीला रोहेकर ने कहा,
“विज्ञान लेखन में बहुत काम आता है। जब मैं कुछ भी लिखती हूँ, तो उसका पुष्टिकरण करके लिखती हूँ।”
गोमती पुस्तक महोत्सव में लेखक ने यह स्पष्ट किया कि साहित्य केवल कला नहीं बल्कि समाज और इतिहास का दस्तावेज़ भी है।
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