अयोध्या। नगर निगम अयोध्या के क्षेत्र में स्थित एक सैकड़ों साल पुराना तालाब अब विवादों में घिर गया है। अवध विश्वविद्यालय के सामने स्थित यह तालाब स्थानीय प्रशासन और भूमि अधिकारियों की रिपोर्ट में दर्ज है। इस तालाब की सुरक्षा और संरक्षण को लेकर वर्षों से स्थानीय नागरिक और सामाजिक कार्यकर्ता संघर्ष कर रहे हैं।

तालाब को लेकर सबसे बड़ा विवाद यह है कि नगर निगम ने हाल ही में इसे ‘गड्ढा’ बताकर औपचारिक रूप से दर्ज कर दिया। इससे पहले कई वर्षों तक तालाब को संरक्षण देने के प्रयास किए गए थे। अभिषेक सावंत और अन्य नागरिकों ने आरटीआई के माध्यम से तालाब की सुरक्षा के लिए कार्रवाई की मांग की थी। प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने यहां बोर्ड लगाकर कूड़ा फेंकने पर रोक भी लगाई थी। इसके बावजूद नगर निगम ने अब इसे गंदा पानी भरने वाला गड्ढा घोषित कर दिया है।
स्थानीय पत्रकार आदर्श शुक्ला ने भी इस मुद्दे पर प्रकाश डाला था। उन्होंने बताया कि विकास प्राधिकरण तालाब के सौंदर्यीकरण पर डेढ़ करोड़ रूपये खर्च करने की योजना बना रहा था। लेकिन नगर निगम की नई रिपोर्ट ने इस प्रयास को चुनौती दी है। तालाब के आसपास की भूमि पहले बंजर चारागाह, कृषि भूमि, कुआं और झीलों से भरी हुई थी। परिसीमन के बाद नगर निगम क्षेत्र में शामिल किए गए लगभग 48 गांवों में भूमि और तालाबों के सौदे भूमाफियाओं के हाथ में चले गए।

विशेषज्ञ और नागरिक कहते हैं कि यह कदम अयोध्या की पावन भूमि और ऐतिहासिक धरोहर को खतरे में डाल सकता है। तालाब न केवल जल संरक्षण का महत्वपूर्ण स्रोत है, बल्कि यह स्थानीय पारिस्थितिकी और सांस्कृतिक विरासत का भी प्रतीक है। भूमि सौदों और विकास योजनाओं के कारण कई पुराने तालाब और जल स्रोत अब अस्तित्वहीन होते जा रहे हैं।
इस विवाद ने स्थानीय प्रशासन और नागरिकों के बीच विश्वास की खाई भी बढ़ा दी है। अयोध्या को विश्व की सुंदरतम नगरी बनाने की योजनाओं के बीच ऐतिहासिक तालाबों का संरक्षण अब चुनौती बन गया है।
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