कासगंज। 40 वर्षीय अरविंद यादव, जो दिल्ली में मजदूरी करते थे, अपने दो बच्चों की स्कूल और ट्यूशन फीस के लिए 2000 रुपये कमाने निकले। ठेकेदार ने उन्हें लालच दिया कि “दो घंटे सीवर में उतर जाओ, पैसे मिल जाएंगे।” लेकिन उन्हें सुरक्षा के लिए न ऑक्सीजन सिलेंडर मिला, न हेलमेट, और न कोई अन्य सुरक्षा इंतजाम।

अरविंद यादव मौत का शिकार हो गए। उनका परिवार—पत्नी निशा और दो मासूम बच्चे—अब न्याय और सहारे के बिना हैं। 1993 से मैनुअल स्कैवेंजिंग कानूनन अपराध है, फिर भी सालाना सैकड़ों मजदूर इसी तरह की परिस्थितियों में दम तोड़ते हैं। अरविंद यादव मौत सिर्फ एक हादसा नहीं, बल्कि एक संगीन लापरवाही और हत्या है।
मजदूर संगठनों का कहना है कि अरविंद यादव मौत जैसी घटनाओं को रोकने के लिए कड़े कानूनों का सख्ती से पालन जरूरी है। ठेकेदारों की जवाबदेही सुनिश्चित करना अब भी चुनौती बना हुआ है। सरकार की निगरानी और उचित सुरक्षा उपायों के बिना मजदूरों की जान जोखिम में है।

अरविंद यादव मौत ने एक बार फिर यह सवाल खड़ा किया है कि गरीब परिवारों के लिए रोज़गार की तलाश कैसे जानलेवा साबित हो सकती है। इस घटना ने सामाजिक और कानूनी दोनों ही स्तरों पर गंभीर चर्चा को जन्म दिया है।
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