नवरात्रि के पावन पर्व का शुभारंभ मां शैलपुत्री की आराधना से होता है। यह दिन भक्तों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है, क्योंकि मां दुर्गा के इस प्रथम स्वरूप की पूजा से जीवन में स्थिरता, शक्ति और शांति का संचार होता है। आइए जानते हैं मां शैलपुत्री की पूजा विधि, मंत्र और उनके अर्थ को विस्तार से।
पूजन विधि:
- कलश स्थापना: नवरात्रि के प्रथम दिन, ब्रह्म मुहूर्त में स्नान आदि से निवृत्त होकर स्वच्छ वस्त्र धारण करें। मंदिर या पूजा स्थल को शुद्ध करें। एक चौकी पर लाल वस्त्र बिछाकर उस पर मां शैलपुत्री की तस्वीर या प्रतिमा स्थापित करें। इसके बाद, एक मिट्टी के कलश में जल भरकर उसमें सिक्का, सुपारी, अक्षत, रोली और पुष्प डालें। कलश के मुख पर आम के पत्ते लगाकर उस पर नारियल स्थापित करें। नारियल पर लाल चुनरी लपेटकर कलावा बांधें। इस कलश को चौकी के दाईं ओर स्थापित करें।

- ज्योति प्रज्वलन: इसके बाद, शुद्ध घी का दीपक प्रज्वलित करें और धूप-अगरबत्ती जलाएं।
- संकल्प: हाथ में फूल, अक्षत और जल लेकर अपने नाम, गोत्र और मनोकामना का स्मरण करते हुए संकल्प लें कि आप पूरे विधि-विधान से मां शैलपुत्री की पूजा करेंगे।
- मां का आह्वान: अब मां शैलपुत्री का ध्यान करते हुए उनका आह्वान करें।
- षोडशोपचार पूजा: मां शैलपुत्री को स्नान कराएं (यदि प्रतिमा हो तो), वस्त्र अर्पित करें, रोली, कुमकुम, अक्षत, पुष्प (विशेषकर गुड़हल का फूल), बेलपत्र, सिंदूर आदि से श्रृंगार करें।
- मंत्र जाप: अब नीचे दिए गए मंत्र का श्रद्धापूर्वक 108 बार जाप करें।
मंत्र:
“वन्दे वाञ्छितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखराम्।वृषारूढां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्।।”
मंत्र का अर्थ:
“जो इच्छित लाभ के लिए वंदनीय हैं, जिन्होंने अपने मस्तक पर अर्धचंद्र धारण किया है, जो वृषभ पर आरूढ़ हैं, शूल धारण करती हैं, ऐसी यशस्वी मां शैलपुत्री को मैं प्रणाम करता हूं।” - नैवेद्य: मां को फल, मिठाई, सूखे मेवे और विशेष रूप से सफेद रंग की चीजें, जैसे सफेद बर्फी या खीर का भोग लगाएं।
- आरती: मंत्र जाप के बाद मां शैलपुत्री की आरती करें। कपूर या घी के दीपक से आरती करें और परिवार सहित आरती में शामिल हों।
- क्षमा प्रार्थना: पूजा में हुई किसी भी त्रुटि के लिए मां से क्षमा याचना करें और अपनी मनोकामना पूरी करने के लिए प्रार्थना करें।
- प्रसाद वितरण: अंत में, प्रसाद को परिवार के सदस्यों और अन्य भक्तों में वितरित करें।
विशेष महत्व:
मां शैलपुत्री पर्वतराज हिमालय की पुत्री हैं। उन्हें प्रकृति और स्थिरता का प्रतीक माना जाता है। इनकी पूजा से भक्तों को शारीरिक और मानसिक शांति मिलती है। यह नवदुर्गा का पहला स्वरूप हैं, और इनकी पूजा से ही नवरात्रि की यात्रा प्रारंभ होती है।
