रायबरेली, 1 जून। डॉ. प्रवेश कुमार न सिर्फ रायबरेली का बल्कि पूरे भारत का गौरव बन चुके हैं। उनके व्यक्तित्व और कृतित्व ने उन्हें एक ऐसी पहचान दिलाई है, जो युवाओं के लिए प्रेरणा का स्रोत है। विश्व हिंदू परिषद के राष्ट्रीय प्रवक्ता के रूप में वे राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भारत की वैचारिक और सामाजिक आवाज बनकर उभरे हैं।
डॉ. प्रवेश कुमार का जन्म उत्तर प्रदेश के रायबरेली जिले के अमांवा विकासखंड स्थित पूरे छेदा खा गांव में हुआ था। बाल्यकाल में ही वे शिक्षा के लिए दिल्ली चले गए। उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातक, परास्नातक, एम.फिल और पीएचडी की डिग्रियां प्राप्त कीं। उनका शोध क्षेत्र “दलित अस्मिता की राजनीति” रहा है, जिसमें उन्होंने सामाजिक संरचना और न्याय पर गंभीर कार्य किया।
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डॉ. कुमार की मेहनत और विद्वता का प्रमाण उनके लेखन और शिक्षण में भी झलकता है। उन्होंने अपने करियर की शुरुआत दिल्ली विश्वविद्यालय के दयाल सिंह कॉलेज में असिस्टेंट प्रोफेसर के रूप में की। उनके विचार और शोध इतने प्रभावशाली रहे कि उन्हें कई बार राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय सम्मेलनों में मुख्य वक्ता के रूप में आमंत्रित किया गया। फिलहाल वे जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (JNU) के अंतरराष्ट्रीय अध्ययन संस्थान में प्राध्यापक के रूप में कार्यरत हैं।
रविवार को रायबरेली स्थित शहीद स्मारक राणा बेनी माधव बक्श सिंह पार्क में आयोजित मातृभूमि सेवा मिशन के नि:शुल्क योग शिविर में उन्होंने मुख्य अतिथि के रूप में भाग लिया। वहां उनके स्वागत में माल्यार्पण और पुष्पवर्षा की गई। अपने उद्बोधन में उन्होंने योग को शारीरिक और मानसिक संतुलन के लिए आवश्यक बताया और सामाजिक समरसता की आवश्यकता पर जोर दिया।
डॉ. प्रवेश कुमार अब तक 15 पुस्तकें, 400 से अधिक लेख, 26 अंतरराष्ट्रीय लेख और 150+ व्याख्यान दे चुके हैं। उनके लेखन में भारतीय समाज के विविध पहलुओं की गहराई से विवेचना की गई है। उन्होंने दलित विमर्श, सामाजिक न्याय, शिक्षा और समरसता जैसे विषयों पर विशेष कार्य किया है।
उनका जीवन युवाओं के लिए एक मिसाल है कि कैसे साधारण परिवेश से निकलकर भी कोई व्यक्ति शिक्षा, संघर्ष और समर्पण के बल पर वैश्विक मंच तक पहुंच सकता है। डॉ. कुमार ने साबित किया है कि विचार और विद्या की शक्ति से देश और समाज को नई दिशा दी जा सकती है।
रायबरेली जैसे छोटे शहर से निकलकर भारत और दुनिया में पहचान बनाना आसान नहीं होता। लेकिन डॉ. प्रवेश कुमार ने अपने परिश्रम, निष्ठा और वैचारिक प्रतिबद्धता से यह असंभव सा दिखने वाला कार्य भी संभव कर दिखाया है।
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