प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, रक्षामंत्री राजनाथ सिंह और गृहमंत्री अमित शाह के हालिया बयानों से संकेत मिलता है कि पीओके पर भारत की रणनीति अब निर्णायक मोड़ पर है। थल और वायुसेनाध्यक्षों के तीखे बयान, सीमावर्ती राज्यों में 31 मई को होने वाली माक ड्रिल, और पाकिस्तान में बढ़ी बेचैनी—इन सभी घटनाओं को जोड़कर देखा जाए तो यह स्पष्ट संकेत हैं कि भारत किसी बड़ी सैन्य कार्रवाई की तैयारी में है।
हाल के भाषणों में प्रधानमंत्री मोदी ने साफ शब्दों में पाकिस्तान को चेताया है—‘‘चैन से रहो, वरना हमारी गोली खाने के लिए तैयार रहो।’’ रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने तो यह तक कह दिया कि पीओके खुद कहेगा कि वह भारत के साथ आना चाहता है। गृह मंत्री अमित शाह भी जम्मू-कश्मीर दौरे में सुरक्षा की समीक्षा कर चुके हैं। इन बयानों और घटनाओं की श्रृंखला सामान्य नहीं कही जा सकती।
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भारतीय सेनाओं के शीर्ष अधिकारियों के बयान भी इस दिशा में संकेत दे रहे हैं। वायुसेना प्रमुख एयर चीफ मार्शल अमरप्रीत सिंह का कहना—‘‘हम प्राण जाए पर वचन न जाए की नीति पर चलते हैं,’’—साफ़ इशारा करता है कि सरकार द्वारा दिए गए किसी भी आदेश को सेना पूरा करने के लिए तैयार है। थल सेनाध्यक्ष जनरल उपेंद्र द्विवेदी द्वारा ‘‘गुरु दक्षिणा में पीओके’’ वाली टिप्पणी ने इन अटकलों को और बल दिया है।
पाकिस्तान की ओर से भी संकेत मिल रहे हैं कि वहां बेचैनी बढ़ रही है। 31 मई को भारत की प्रस्तावित माक ड्रिल को लेकर पाक मीडिया और सैन्य हलकों में खलबली है। लोगों को कई महीनों का राशन जमा करने की सलाह दी जा रही है। आतंकियों के समर्थक भी सार्वजनिक रूप से भारत और प्रधानमंत्री मोदी के खिलाफ ज़हर उगलते दिखे हैं, जिससे भारत के जवाबी कार्रवाई की संभावनाएं और प्रबल होती हैं।
विदेश मामलों के जानकारों की मानें तो भारत की विदेश नीति भी इस दिशा में निर्णायक भूमिका निभा रही है। विदेश मंत्री एस. जयशंकर लगातार विदेशों का दौरा कर रहे हैं। रूस से सैन्य आपूर्ति को लेकर कई अहम अपडेट्स आ चुकी हैं। अफगानिस्तान के साथ भारत की बढ़ती नजदीकी और तालिबान द्वारा पाकिस्तान पर दबाव, यह सब मिलकर इस रणनीति को और धार दे रहे हैं।
पूर्व राजनयिक दीपक वोहरा का कहना है कि पीओके के लोग जम्मू-कश्मीर के विकास से प्रभावित हैं और भारत के साथ आने को आतुर हैं। बलूचिस्तान, सिंध और खैबर पख्तूनख्वा में बढ़ता असंतोष पाकिस्तान को अंदर से खोखला कर रहा है। ये सभी पहलू भारत के लिए रणनीतिक अवसर बन सकते हैं।
प्रधानमंत्री का यह कहना कि ‘‘ऑपरेशन सिंदूर सिर्फ अल्पविराम है’’ और रक्षामंत्री द्वारा यह दोहराना कि अब बात सिर्फ आतंकवाद और पीओके पर ही होगी, यह स्पष्ट करता है कि भारत ने मानसिक, राजनीतिक और सैन्य स्तर पर अपनी रणनीति पूरी तरह तय कर ली है।
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